पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का हिन्दू सम्राट, है जिसकी अनोखी प्रेम कहानी ने हिन्दुस्तान के इतिहास को अमर कर दिया ।
नमस्कर दोस्तों
पृथ्वीराज चौहान कहा जाता है चौहान वंश के राजा थे। चौहान वंश के क्षत्रिय शासक सोमेश्वर और कर्पूरा देवी के घर साल 1149 में जन्में थे। उन्होंने राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से पर भी नियन्त्रण किया। हालाँकि मध्ययुग में भारत के राजनीतिक केंद्र दिल्ली के राजा के रूप में वर्णित किया है। उनके माता-पिता की शादी के कई सालों बाद काफी पूजा-पाठ और मन्नत मांगने के बाद जन्में थे। सन 1166 मे महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी को संभाला और उन्हे दिल्ली का कार्यभार सौपा गया। पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्यों के खिलाफ़ सैन्य सफलता हासिल की।
- पृथ्वीराज सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की। जबकि युद्ध और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपने गुरु जी श्री राम जी से प्राप्त की। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बेहद साहसी, वीर, बहादुर, पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण रहे।
- पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय सेना थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी भी थे।
- पृथ्वीराज शब्द भेदी बाण चलाने की अद्भुत कला सीखी जिसमें वे बिना देखे आवाज के आधार पर बाण चला सकते थे। एक बार बिना हथियार के ही उन्होंने एक शेर को मार डाला था।
- पृथ्वीराज चौहान जब महज 11 साल के थे, तभी उनके पिता सोमेश्वर की एक युद्ध में मौत हो गई, जिसके बाद वे अजमेर के उत्तराधिकारी बने दिल्ली पर भी अपना सिक्का चलाया।
- चंदबरदाई पृथ्वीराज चौहान के सबसे अच्छे दोस्त थे, जो उनके एक भाई की तरह उनका ख्याल रखते थे।चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे, जिन्होंने बाद में पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरागढ़ का निर्माण किया था, जो दिल्ली में वर्तमान में भी पुराने किले के नाम से मशहूर है।
- पृथ्वीराज की वीरता की प्रशंसा चारो दिशाओं में गूंज रही थी। तभी संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता का और सौन्दर्य का वर्णन सुना। और उसके बाद से उन्हे पृथ्वीराज चौहन से प्रेम बंधन में बंध गई । और दूसरी तरफ संयोगिता के पिता जी जयचन्द ने संयोगिता का विवाह स्वयंवर के माध्यम से करने की घोषणा कर दी थी। जयचन्द ने अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के बाद संयोगिता का स्वयंवर होना था। जयचन्द अश्वमेधयज्ञ करने के बाद भारत पर अपने प्रभुत्व की इच्छा रखता था। जिसके विपरीत पृथ्वीराज ने जयचन्द का विरोध किया। अतः जयचन्द ने पृथ्वीराज को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया और उसने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की प्रतिमा स्थापित कर दी। ओर जब संयोगिता को पता चला कि, पृथ्वीराज चौहन स्वयंवर में अनुपस्थित रहेंगे, तो उसने पृथ्वीराज को बुलाने के लिये दूत भेजा। संयोगिता मुझसे प्रेम करती है, यह सब जानकर पृथ्वीराज ने कन्नौज नगर की ओर प्रस्थान किया । स्वयंवर के समय संयोगिता हाथ में वरमाला लिए उपस्थित राजाओं को देख रही थी, तभी उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी। उसी समय संयोगिता मूर्ति के समीप जाकर वरमाला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना देती हैं। उसी क्षण घोड़े पर सवार पृथ्वीराज राज महल में आते हैं और सिंहनाद के साथ सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकारने लगते हैं। पृथ्वीराज संयोगिता को ले कर इन्द्रपस्थ (आज दिल्ली का एव भाग है) की ओर निकल पड़े।
- 1190–1191 में मोहम्मद गौरी ने चौहान क्षेत्र पर आक्रमण किया था और तबरहिन्दा या तबर-ए-हिन्द (बठिंडा) पर कब्जा कर लिया।
- तराईन में पृथ्वीराज की सेना का सामना किया। आगामी लड़ाई में, पृथ्वीराज की सेना ने निर्णायक रूप से ग़ोरियों को हरा दिया।
- तराइ की दूसरी लड़ाई में मुहम्मद गौरी द्वारा, पृथ्वीराज चौहान पर कब्जा कर लिया गया और मोहम्मद गौरी द्वारा पति को बंदी बना लेने के बाद, महारानी और अन्य राजपूत अफगान आक्रमणकारियों को संयोगिता आत्मसमर्पण करने के बजाय अपनी जान गंवा दी।
- मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को लाल गर्म लोहा से अंधा करा दिया ।
- पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र चंदबरदाई की मदद से मुहम्मद गौरी को शब्दभेदी वाण” विद्या से मार डाला।
- गौरी की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद बरदाई ने एक-दूसरे को मार डाला था ।और यही इनकी कहानी समाप्त हो जाती हैं।
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