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वर्णमाला के भेद

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Topic ► 【वर्ण माला】 ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ नमस्कार दोस्तों  वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। इसमें 52 वर्ण होते हैं और 11 स्वर होते हैं। मूल व्यंजनों की संख्या 33 होती है जबकि कुल व्यंजन 52 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन , चार सयुंक्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं। वर्णमाला के भेद -  वर्णमाला को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा गया है :  ( 1) स्वर (Swar) (2) व्यंजन (Vyanjan) स्वर (Vowels) स्वर तीन प्रकार के होते हैं। (i) ह्स्व स्वर (लघु स्वर)  (ii) दीर्घ स्वर  (iii) प्लुत स्वर  ( i) ह्स्व स्वर - लघु स्वर ऐसे स्वर जिनको बोलने में कम समय लगता है उनको ह्स्व स्वर (Hsv Swar) कहते हैं। इनकी संख्या 4 होती हैं। अ, इ, उ, ऋ  (ii) दीर्घ स्वर ऐसे स्वर जिनको बोलने में अधिक समय लगता है उनको दीर्घ स्वर (Dirgh Swar) कहते हैं। इनकी संख्या 7 होती है। आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ  (iii) प्लुत स्वर अयोगवाह (Ayogvah) यह दो होते हैं। अं, अः अं को अनुस्वार कहते हैं अ: को विसर्ग कहते हैं व्यंजन (Consonants) जिन वर्णों का उच्चारण स्वर की सहायता से होता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। ये पाँच प्रकार के होते हैं। (i) स्पर

Unit -1अधिगम का सिद्धांत:

                                             UNIT- 1

नमस्कार दोस्तों 

अधिगम सिद्धांत: पावलव का शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत
शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत में उद्दीपन अनुक्रिया के मध्य सहचार्य स्थापित होता है।
1शास्त्रीय अनुबंधन अथवा अनुकूलित अनुक्रिया
2. क्रिया प्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन
3. अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें एक प्रभावहीन उद्दीपन इतना प्रभावशाली हो जाता है कि वह गुप्त अनुक्रिया को प्रकट कर देता है।
4. शास्त्रीय अनुबंधन को समझने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य में अन्य क्रियाएं होती है, कुछ जन्मजात होती है जैसे सांस लेना, पाचन आदि तथा कुछ मनोवैज्ञानिक लिए होती है जैसे पलक झपकना, लार आना आदि इन्हें अनुबंधन क्रियाऐं भी कहते हैं।
5. शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत आईवी पाउलोव द्वारा सन् 1904 में प्रतिपादित किया गया इस सिद्धांत के अनुसार अस्वाभाविक उद्दीपन के प्रति स्वभाविक उद्दीपन के समान होने वाली अनुक्रिया शास्त्रीय अनुबंधन है अर्थात उद्दीपन और अनुक्रिया के बीच सहचार्य स्थापित होना ही अनुबंधन है।
प्रयोग- पावलोव ने एक कुत्ते के ऊपर प्रयोग किया उसने कुत्ते की लार ग्रंथि का ऑपरेशन किया और उस लार ग्रंथि को एक ट्यूब द्वारा कांच की बोतल से जोड़ दिया जिसमें लार को एकत्रित किया जा सकता था।
इस प्रयोग में कुत्ते को खाना दिया जाता था तो खाना देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना प्रारंभ हो जाती थी। खाना देने के पूर्व घंटी बजाई जाती थी और घंटी के साथ ही खाना दिया जाता था इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया तत्पश्चात एक बार केवल घंटी बजाई गई किंतु भोजन नहीं दिया इसके पश्चात भी कुत्ते के मुंह में लार आनी प्रारंभ हो गई।
इस संपूर्ण प्रक्रिया को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है


1. भोजन स्वभाविक उद्दीपक(UCS)—————– लार स्वभाविक अनुक्रिया(UCS)


2. घंटी की आवाज (अस्वभाविक उद्दीपन) एवं भोजन (स्वभाविक उद्दीपन)————– लार स्वभाविक अनुक्रिया(UCR) एवं भोजन(CS+UCS)


3. घंटी की आवाज अस्वभाविक उद्दीपन(CS)—————————– लार आना, अस्वभाविक अनुक्रिया


इस प्रयोग के अनुसार यदि स्वभाविक उद्दीपक के साथ अस्वभाविक उद्दीपक दिया जाए और इसकी पुनरावृति अनेक बार की जाए तो भविष्य में स्वभाविक उद्दीपक के हटाए जाने पर भी अस्वभाविक उद्दीपक से ही वही अनुक्रिया होती है जो स्वभाविक उद्दीपक के साथ होती है।
प्रेरणा- प्रेरणा जितनी अधिक होगी प्राणी उतनी ही शीघ्रता से अनुबंधन स्थापित करेगा।
समय के सन्निकटता- स्वभाविक एवं अस्वभाविक उद्दीपकों के बीच अधिक समय अंतराल नहीं होना चाहिए यदि अधिक समय अंतराल होगा तो अनुबंध स्थापित नहीं होगा।
पुनरावृति- अनुबंध स्थापित होने के लिए स्वभाविक एवं अस्वभाविक उद्दीपकों की लगातार पुनरावृति होनी चाहिए।
नियंत्रित वातावरण- शास्त्रीय अनुबंध द्वारा सीखने के लिए वातावरण को नियंत्रित करना आवश्यक है। 

अभिवृत्ति निर्माण में सहायक- शास्त्रीय अनुबंधन के द्वारा अधिगम से शिक्षक एवं स्कूल आदि के प्रति अच्छी अभिवृत्ति ओं के विकास में सहायता मिलती है
बुरी आदतों को तोड़ना- यह नए केवल अच्छे आंतों की निर्माण अभी तू बुरी आदतों को तोड़ने में भी सहायक है।
आदत निर्माण-के पावलव के अनुसार विभिन्न प्रकार की आदतें जो कि प्रशिक्षण शिक्षा एवं अनुशासन पर आधारित है शास्त्रीय अनुबंधन की ही श्रृंखला मात्र है।
पशुओं का प्रशिक्षण- सर्कस हेतु इसी विधि से पशुओं को प्रशिक्षित किया जाता है।
 शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत की आलोचना


1. इस सिद्धांत में उद्दीपन को पुनः दोहराया जाता है जिससे संबद्धता बनी रहे यदि उद्दीपनों को लगातार प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो उसमें ये उद्दीपन प्रभावहीन हो जाते हैं।
 

2. यह सिद्धांत मनुष्य को मशीन मानता है जो कि सत्य नहीं है कोई भी मनुष्य मशीन नहीं है उसमें बुद्धि विवेक चिंता न तर्क करने की क्षमता है।
यदि हमारे द्वारा दी गई इस जानकारी से आपको कुछ सीखने को मिलता है तो आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों तक सोशल मीडिया के माध्यम शेयर कर सकते हैं। 
धन्यवाद ।

अनुबंधन दो प्रकार का होता है-

शास्त्रीय अनुबंधन को प्रभावित करने वाले कारक-

शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के अनुप्रयोग-


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